The Little Guide to Greater Glory and A Happier Life: Hindi and English Combined Edition -- Walk of Hope Special Edition, 2014 (English Edition)
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वह बालक नौ वर्ष से तनिक अधिक बड़ा था जब उसने उस अज़नबी को देखा। वह दक्खिनी मुसलमान परिवार का बेटा था जो कि त्रिवेन्द्रम में बसे हुए थे। केरल प्रदेश की सुन्दर राजधानी है। उस ने पहले तो सोचा यह कोई देवदूत हैं जैसा उसने अपनी दादी माँ से सुन रखा था, देवदूत मुहम्मद साहब को और अन्य पैगम्बरों और सन्तों को दुआ देने आते हैं।
एक शाम, वह बालक वन्चियूर में अपने घर के आस-पास के प्रांगण में कुछ विषेश न करते हुए घूम रहा था, के अन्तिम छोर पर कटहल के पेड़ के नीचे उसने किसी को खड़े देखा। वह बालक बिल्कुल भी नहीं डरा, बल्कि उस अज़नबी के पास जाने को इच्छुक हुआ।
अज़नबी लंबा, गौरवर्ण और बलिष्ठ था और कमर पर लंगोट धारण किए हुआ था। उसने बालक के सिर पर दाहिना हाथ रखा और करुणामय हो पूछा, "क्या तुम्हें कुछ याद है?" उस बालक ने जवाब दिया, "नहीं।" उस अज़नबी ने दक्खिनी में कहा, "तुम बाद में समझोगे। आज के बाद तुम मुझे कई वर्षों तक नहीं मिलोगे। लेकिन तुमको पढ़ाई पूरी करनी होगी जिसे तुमने अधूरी छोड़ दिया है। तुमको मेरे बारे में किसी को भी बताने की इज़ाजत नहीं दी जाएगी जब तक कि सही समय न आ जाए। अब घर जाओ।" इस के साथ ही वह अज़नबी गायब हो गया।
वह प्रथम दीक्षा थी। दो वर्ष पश्चात छुपन-छुपाई खेलते हुए, बालक को एक अनुभव हुआ जिसे यौगिक भाषा में केवल कुम्भक कहा जाता है – श्वास की रेचक व पूरक गति का पूर्णविराम। हृदय एक अपूर्व आनंद से भर गया। श्वसन क्रिया कुछ मिनटों में फिर से शुरु हो गयी।
The boy was a little more than 9 years old when he saw the strange being. He was the son of a Deccani Muslim family, settled in Trivandrum, the beautiful capital of Kerala. Having heard stories of angels coming down to bless Mohammed and other prophets and saints from his devout grandmother, he thought at first that it was an angel.
One evening, the boy was wandering around the courtyard of his house in Vanchiyoor, doing nothing in particular. At the far end of the courtyard, he saw someone standing under the jackfruit tree. The stranger gestured to the boy to come forward. The boy felt no fear whatsoever, and was eager to go closer to the stranger.
The stranger was tall, fair and well-built and was bare-bodied except for a piece of loin cloth worn around his waist. He put his right hand on the boy’s head and asked with kindness, “Do you remember anything?” in Hindi. To the boy’s answer that he didn’t, the stranger said in Deccani, “You will understand later. You will not meet me for many years after this, but you will have to finish the studies that you have left incomplete. You will not be allowed to tell anyone about me until the time is ripe. Go home now.” With that he vanished.
That was the first initiation. Two years later, while playing hide and seek, the boy experienced what may be described in yogic terms as Keval Kumbhak – the suspension of inhalation and exhalation. Bliss filled his heart. The breathing resumed in a few minutes.